शनिवार, अक्तूबर 26, 2013

मैं ख़ास शायद था नहीं

दोस्तों समझ तो मुझे भी नही आया कि क्या लिख दिया है, पर बस एक काफ़िया मिला तो लिखने बैठ गया, ये बिना सोचे की आखिर कैसी बनेगी बस लिख दी। माफ़ करना अगर कुछ गलत लिखा हो तो, और अगर पसंद न आये तो बताना जरुर मुझे इंतज़ार रहेगा।   


किस्मत में तेरी प्यार शायद था नहीं
मुझको भी ऐतबार शायद था नहीं 

क्यों मैं रात रात भर ऐसे ही रोता हूँ 
जीने का सुरूर शायद था नहीं

याद कर तू, वो बज़्म वो तन्हाईयां
तुझको याद मेरे यार शायद था नहीं 

मैं तो हूँ इक राही, तू मंजिल मेरी
मंजिल पे खुमार शायद था नहीं 

साक़ी से कहता हूँ के अब पीना नहीं 
उसको भी मुझसे प्यार शायाद था नहीं 

बेवफ़ा तेरी वफ़ा कहाँ गयी 
मैं ही वफ़ा का यार शायाद था नहीं 

दुःख मेरे दामन है जकड़े हुए 
सुख मेरे सरकार शायद था नहीं 

आज "आशु" ही यहाँ तडपे नहीं 
पर हर कोई यहाँ प्यार करता नहीं 

1 टिप्पणी:

  1. ये गलती है के तुम उसे बोल नहीं रहे हो। यहाँ लिखने से कहीं बेहतर होता तुम उसे चुपके से कान में कह देते।

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