रविवार, अक्तूबर 27, 2013

मोहब्बत पर ऐतबार करना नहीं

मोहब्बत पर ऐतबार करना नहीं 
जीना है मुझको है मरना नहीं।

जो-जो चला है राह पे इसकी 
वो कहता सबसे के चलना नहीं।

बहे इतनी आंसू हैं आँखों से मेरी 
के इक बूँद भी अब तो निकलता नहीं।

जहां खाई ठोकर वहीँ तो थी मंजिल 
क्या मंजिल पे अब है पहुँचना नहीं?

जो हो जाती तुमसे मुलाक़ात मेरी 
तो ऐसे यहाँ मैं मचलता नहीं।

किसपर करोगे भरोसा ओ यारों 
यहाँ पर कोई भी तो अपना नहीं।

कश्ती भी डूबी वहां पर थी मेरी 
जहां डूबे कोई, निकलता नहीं।

है अब भी समय "आशु" बोले है तुमसे
जो संभला न फिर वो संभलता नहीं।

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