सोमवार, नवंबर 04, 2013

गुनहगार


ग़मों कि महफ़िल के मेहमान हो गए 
गुनाह किये बिना ही गुनहगार हो गए।

फूलों से की थी मोहब्बत हमने
फूलों से की थी मोहब्बत हमने 
दामन में कांटे बेशुमार हो गए।

ग़मों कि महफ़िल के मेहमान हो गए।

याद जब भी करते हैं ज़ालिम जब भी उसे 
याद जब भी करते हैं ज़ालिम जब भी उसे 
जीने कि चाहत में खुशगुमार हो गए।

ग़मों कि महफ़िल के मेहमान हो गए।
गुनाह किये बिना ही गुनहगार हो गए।

इश्क़ है या नहीं, ये पता नहीं अब तक हमें
इश्क़ है या नहीं, ये पता नहीं अब तक हमें
फिर भी यूहीं उसके प्यार में बर्बाद हो गए।

 ग़मों कि महफ़िल के मेहमान हो गए।

जब भी उसकी आँखों में देखा हमने 
जब भी उसकी आँखों में देखा हमने 
नज़रें झुकाकर वो शर्मसार हो गए।

ग़मों कि महफ़िल के मेहमान हो गए।
गुनाह किये बिना ही गुनहगार हो गए।

दिन जब आया ज़ाहिर-ए-इश्क़ का 
दिन जब आया ज़ाहिर-ए-इश्क़ का 
बयां किये बिना ही रुसवार हो गए।

ग़मों कि महफ़िल के मेहमान हो गए।

दोस्ती न मिली किसी कि हमें 
दोस्ती न मिली किसी कि हमें 
सबके दुश्मन हम ख़ास हो गए।

ग़मों कि महफ़िल के मेहमान हो गए।
गुनाह किये बिना ही गुनहगार हो गए।

मिले जब आखिरी बार उससे 
मिले जब आखिरी बार उससे 
कुछ अनजान सवालों के शिकार हो गए।

ग़मों कि महफ़िल के मेहमान हो गए।

लोगों ने पूछा मुझसे के ओरे "आशू"
लोगों ने पूछा मुझसे के ओरे "आशू"
तुम क्यों इस इश्क़ के शिकार हो गए।

ग़मों कि महफ़िल के मेहमान हो गए।
घरवालों कि नज़रों में लापरवाह इंसान हो गए।

ग़मों कि महफ़िल के मेहमान हो गए।
गुनाह किये बिना ही गुनहगार हो गए।
गुनाह किये बिना ही गुनहगार हो गए।

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