शनिवार, नवंबर 30, 2013

मेरा दर्द रिस गया


मेरी कलम से आज मेरा दर्द रिस गया 
रोका बहुत मैंने उसे पर वो निकल गया।।

इससे पहले मैं कभी भी रोया नहीं था 
पन्ना मेरा आज ये अश्कों से भर गया।।

इक फूल था खिलने की डगर, पर अचानक से 
हैं क्या हुआ खिलने से पहले ही मुरझ गया।।

मैं कर रहा इंतज़ार के आएगी वो कभी 
ये इंतज़ार ही मेरी खुशियों को डस गया।।

लिखने को मिले शब्द न तो कुछ भी लिख दिया 
ये कुछ भी मेरे दर्द की पहचान बना गया।।

अश्कों की जगह 'आशू' का बहने लगा लहू 
इसी लहू से अब तो है दामन भी सन गया।।

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