रविवार, दिसंबर 22, 2013

जिन्हें दिल में अब हम बसाने लगे थे

जिन्हें दिल में अब हम बसाने लगे थे
वो ही दूर अब हम से जाने लगे थे...

जो कहते थे आँखें तेरी हम बनेंगे
वही हम से नज़ारे चुराने लगे थे...

थी उनको जिन भी रकीबों से नफरत
उन्हें को वो अपना बताने लगे थे...

जिन पर यकीं था खुद से भी ज्यादा
वही झूठा कहकर बुलाने लगे थे...

जो सोचा नहीं था ख़्यालों में हमने
उसे सोचा सोच कर घबराने लगे थे...

न मांगी ख़ुदा से थी उसकी ख़ुदाई
क्यों ख़ुदा भी अब हमको भुलाने लगे थे...

जो मिलते थे सहरा में साहिल पे ‘आशू’
वही मिलने में अब कतराने लग थे...

वही मिलने में अब कतराने लग थे...   

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