जिन्हें दिल में अब हम बसाने लगे थे
वो ही दूर अब हम से जाने लगे थे...
जो कहते थे आँखें तेरी हम बनेंगे
वही हम से नज़ारे चुराने लगे थे...
थी उनको जिन भी रकीबों से नफरत
उन्हें को वो अपना बताने लगे थे...
जिन पर यकीं था खुद से भी ज्यादा
वही झूठा कहकर बुलाने लगे थे...
जो सोचा नहीं था ख़्यालों में हमने
उसे सोचा सोच कर घबराने लगे थे...
न मांगी ख़ुदा से थी उसकी ख़ुदाई
क्यों ख़ुदा भी अब हमको भुलाने लगे थे...
जो मिलते थे सहरा में साहिल पे ‘आशू’
वही मिलने में अब कतराने लग थे...
वही मिलने में अब कतराने लग थे...
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