लगा रिसने...
लगा रिसने भरा सैलाब था
जो भावों का
संजोऊ, कहाँ न है खबर न है पता...
संजोऊ मैं कहाँ इसे न खबर न
है पता...
लगा रिसने.....................भावों का.................!!!
मंजिलें थी कहाँ,
हम तो यूँहीं चल थे पड़े
कहते हैं, दोष है इसमें
बेगुनाह राहों का...
लगा रिसने भरा सैलाब था
जो भावों का
संजोऊ मैं कहाँ इसे न खबर न
है पता...
लगा रिसने.....................भावों का.................!!!
जिसे कहते थे मौत, जिंदगी
बनी मेरी
जिसे कहते थे मौत, जिंदगी
बनी मेरी
आज बस है, सहारा है, उसी की
बाहों का...
लगा रिसने भरा सैलाब था
जो भावों का
संजोऊ मैं कहाँ इसे न खबर न
है पता...
लगा रिसने.....................भावों का.................!!!
तबियत कैसी है, ये तो नहीं
पूछो यारों
हाल मैं क्या कहूँ, टूटे
मेरे अरमानों का...
लगा रिसने भरा सैलाब था
जो भावों का
संजोऊ मैं कहाँ इसे न खबर न
है पता...
लगा रिसने.....................भावों का.................!!!
कभी यहाँ, कभी वहां दिललगी
करते थे
पर जो ये दौर है, वो है बड़े
दीवानों का...
लगा रिसने भरा सैलाब था
जो भावों का
संजोऊ मैं कहाँ इसे न खबर न
है पता...
लगा रिसने.....................भावों का.................!!!
कभी रकीब थे जो, आज हैं
करीबी हुए
कभी रकीब थे जो, आज हैं
करीबी हुए...
अब तो कोई मोल ही न है,
यहाँ बहानों का...
लगा रिसने भरा सैलाब था
जो भावों का
संजोऊ मैं कहाँ इसे न खबर न
है पता...
लगा रिसने.....................भावों का.................!!!
-अश्वनी कुमार