गुरुवार, जुलाई 31, 2014

मर हम गए

जब दर्द हद से बढ़ गया, तब मर हम गए.
मरहम कहीं जब न मिला, तब मर हम गए.

भोर शब होने लगी बसमें नहीं कुछ भी.
जब हर कोई गुम हो चला, तब मर हम गए.

कोई बचा न हम कदम, कोई भी मुहब्बत.
ये दिल बहुत सहता रहा, तब मर हम गए.

होते रहे तब्दील हम दर्दों की अंजुमों से
साहिल का फिर भी न पता, तब मर हम गए.

हो रही थी हर कहीं मुहब्बतें बरखा.
दिल रह गया सूखा खड़ा, तब मर हम गए.