जब दर्द हद से बढ़ गया, तब मर हम गए.
मरहम कहीं जब न मिला, तब मर हम गए.
भोर शब होने लगी बसमें नहीं कुछ भी.
जब हर कोई गुम हो चला, तब मर हम गए.
कोई बचा न हम कदम, कोई भी मुहब्बत.
ये दिल बहुत सहता रहा, तब मर हम गए.
होते रहे तब्दील हम दर्दों की अंजुमों से
साहिल का फिर भी न पता, तब मर हम गए.
हो रही थी हर कहीं मुहब्बतें बरखा.
दिल रह गया सूखा खड़ा, तब मर हम गए.
Aswini ji mujhe laga ye kavita apne mujh par likhi hai...apko badhai ho...likhte rhe...
जवाब देंहटाएंIske liye jarur likhna bhai ek do
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