सोमवार, अगस्त 25, 2014

मोहब्बत इक खजाना है!


के अक्सर सोचते है हम, मोहब्बत इक खजाना है.
खजाना जब था मोहब्बत, जमाना वो पुराना है.
                                          
बदल रही है चाहतें, बदल रही है मोहब्बत.
आज हर कोई दुनिया में, खुद में ही सयाना है.

जिसे गाते थे याद करके, सुकून मिलता था हमें.
सीने पर लोबान रखकर भुलाया वो तराना है.

वो माँ जो रूठ जाती थी, मेरी शैतानियों आगे.
नहीं रही है संग मेरे, मगर उसे मनाना है.

चले बाज़ार की तरफ, किस्मत खरीदने को हम.
नहीं बिकती है ये किस्मत, खुदी को ये बताना है.

ज़माने से छिपा लिया था सारा ग़म, मुझे मिला.
ज़माने से नहीं तुझे ये अपने आप से छिपाना है.

“आशू” सता लिया बहुत, कितनों को अब सताएगा.

मेरी किस्मत कहे मुझसे मुझे, तुझे सताना है.

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सोमवार, अगस्त 18, 2014

दिल की कुछ ख्वाइशें

दिल की कुछ ख्वाइशें


दिल की कुछ ख्वाइशें उड़ने को तैयार हैं.
कदम खुद ही तेरी ओर चलने को तैयार है.

जिए तो खूब हैं हम दिल खोलकर
आज तुझपे हम मरने को तैयार हैं.

अभी तक कुछ किया या नहीं हमने.
पर आज कुछ करने को तैयार  हैं.

इश्काना माहौल सख्त हो गया है आजकल.
पर हम हैं कि इसमें पिघलने को तैयार हैं.

शाखों पे पत्ते है बेशुमार मगर.
हम बस एक ही पर मिटने को तैयार हैं.


-अश्वनी कुमार

गुरुवार, अगस्त 07, 2014

तेरी ओर आना चाहूँ

तेरी ओर आना चाहूँ, पर तूफ़ान हैं बहुत.
मिलन के बीच में यहाँ, शैतान हैं बहुत.

चलो दिलकशी का दौर है, हम भी ज़रा चख लें.
बूढ़े हैं कम यहाँ, यहाँ जवान हैं बहुत.

चलो फैला लो पंख पंछी, कब से निराश हो.
हिम्मत तो करो फिर से के मैदान हैं बहुत.

वबा रही है फ़ैल, यहाँ सब बीमार हैं.
  हम रोक ले ते इसको पर बेईमान हैं बहुत.

अपनी नहीं है सोचते जो मुल्क के आगे.
ऐसे ही विरले देश पर कुर्बान हैं बहुत.

मिटा तो गर चाहते हो, तुम हस्ती हमारी.
अलग दिल से करोगे कैसे के, हिन्दुस्तान हैं बहुत.

‘आशू’ तड़प रहा है, अब पास जाने को.

पर अपने हैं कम यहाँ, यहाँ अनजान हैं बहुत. 

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सोमवार, अगस्त 04, 2014

हमें कुछ लोग कहते हैं

हमें कुछ लोग कहते हैं, के हम परेशानी में रहते हैं.
उन्हें कैसे बताएं हम, के वीरानी में रहते हैं.

जगा दे रूह को जो वो तो आहट होती ही रहती.
मगर हम हैं जुदा, ओनु ही रवानी में रहते हैं.

कहीं पर बाढ़ है, धरती कहीं खिसकने लगी है.
यहाँ पर लोग सभी, दुखों की सानी में रहते हैं.

कहीं कुछ होता रहे, अपने में ही मग्न जो रहें.
यही बचपन (बच्चे) हैं, जो यादें सयानी में रहते हैं.

बुढ़ापा चढ़ गया, हर ओर बदहाली के बादल हैं.
मगर कुछ लोग अब भी अपनी जवानी में रहते हैं.

सुने किस्से बहुत हमने वो लैला और मजनू के.
है ज़िंदा इश्क अब भी, या फिर हम कहानी में रहते हैं.

के ‘आशू’ रोक न पाया अश्कों को बहने से.
                जब से सूना है उसने, लोग दलाली में रहते हैं.