शुक्रवार, सितंबर 26, 2014

इंतज़ार बाक़ी है.


इंतज़ार... इंतज़ार इंतज़ार बाक़ी है.
तुझे मिलने की ललक और खुमार बाक़ी है.

यूँ तो बीती हैं सदियाँ तेरी झलक पाए हुए.
जो होने को था वो ही करार बाक़ी है.

खाने को दौड़ रहा है जमाना आज हमें.
*1यहाँ पे एक नहीं कितने ही जबार बाक़ी है.

वोही दुश्मन है, है ख़ास वोही सबसे मेरा.
दूरियां बरकरार, फिर भी इंतेज़ार बाक़ी है.

यूँ तो है इश्क़ हर जगह, फैला अनंत तलक.
मगर वो खुशबु इश्क़े जाफरान बाक़ी है.

Picture By Rudolf

तेरा कसूर नहीं पीने वाले दोषी हैं.
तू ग़म को करने वाला कम महान साक़ी है.

पलटती नांव से पूछो क्या डरती लहरों से हो.
कहेगी न, क्योंकि संग में उसके कहार माझी है.

जहां पहुंचे न रवि, कवि पहुंच ही जाता है.
हम क्यों हैं अब भी यहाँ पर मलाल बाक़ी है.

जब भी लिखें तो जमाने के आंसू बहने लगे.
अभी लिखने में मेरे यार धार बाक़ी है.

कभी कोई, कभी कोई मिज़ाज़ बदले तो हैं.
जो था बचपन में, वोही मिज़ाज़ बाक़ी है.

यूँ तो हम भूल गए बात सारी, शख्स सभी.
जो भी है संग उसमें माँ की याद बाक़ी है.

तराने यूँ तो बहुत हैं जिन्हें हम सुन लेते.
जिसे सुनने की चाह, तराना-जहान बाक़ी है.

जो बैठे हैं अपने में सिमट के, उठ खड़े हों.
आगे तुम्हारे सारा आसमान बाक़ी है.

कहाँ ढूँढू ऐ ‘आशू’ तुझको इन पहाड़ों में.
इनकी ऊँचाइयों में कहाँ प्यार बाक़ी है?

*1 (जबार- जाबिर- ज्यादती करने वाले)
-अश्वनी कुमार 


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