अंतराल एक ऐसा ब्लॉग है, जहां आप सभी मेरी लिखी कुछ ग़ज़लें पढ़ पायेंगे। बस एक कोशिश की है लिखने की, क्योंकि न तो मैं लिखना जानता हूँ। और न ही मैंने कहीं से सीखा है। पर जितना भी पढ़ा उसी के आधार पर कुछ लिख पाने में सक्षम हुआ हूँ। अब आप सब की प्रतिक्रियाएं चाहता हूँ।
गुरुवार, जनवरी 20, 2011
वक्त
कविता करता नहीं हूँ पर कभी कभी दिल में जब मै अकेले होता हूँ तो कुछ यूँ ही बातें आती जाती रहती हैं और आज पहली बार आपसे साझा कर रहा हूँ..बताइयेगा कैसी है..
वक्त से तो दिन है बन्दे ,वक्त से ही रात है
वक्त से है चाँद तारे, वक्त से आकाश है
वक्त से है सारी खुशियाँ वक्त से है सारे ग़म
वक्त की गर्दिश में है सारी दुनिया सारा कर्म
किसी को है बनता ये, किसी को है बिगड़ता
किसी को है बनता ये, किसी को है बिगड़ता
किसी को है संवारता, किसी को है पुकारता
किसी की ज़िन्दगी में लाता खुशियों की बौछार ये
किसी की ज़िन्दगी में लाता ग़मों की बरसात ये
कभी न माफ़ करता है कभी न जुर्म करता है
वक्त तो वक्त है बन्दे वक्त तो वक्त है...
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Uttam Kary Hai...
जवाब देंहटाएंbahut achha
जवाब देंहटाएंpankaj ji main aabhari hun aapkaa!!!!
जवाब देंहटाएंpratikriyaa ke liye dhanyavaad!!!
saadar!!!