मंगलवार, सितंबर 02, 2014

चल रहे हैं रास्ते!

चल रहे हैं रास्ते!


के चल रहे हैं रास्ते मैं ही ठहर गया
उन मंजिलों की सोच कर जैसे सहम गया...

अपनी ही धुन में रहता था जो आदमी अब तक
न जाने कैसे इक पल में ही इतना बदल गया...

हरियाली थी चारों तरफ मैं ही वीरान था
मुझपे न जाने कैसा वो ढाके कहर गया...

जहां था गुजारा बचपन जवानी गुजार दी
न जाने कब था छुटा पीछे शहर गया...

अब आ गए हैं आगे हम बहुत ही आगे
जिस सफ़र में था जीवन अब वो सफ़र गया...

दीवाने हो गए 'आशू' जिस इश्क-ए-हिज्रा में 
फिर धीरे धीरे दूर मुझसे उसका असर गया...

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