वो हलकी हलकी बारिशें मुझे अब भी याद है
न साथ होके भी तू मेरे ही साथ है.
हर बात कर ली मैंने जब दूर जा रही
वो अब भी अधूरी है जो असली बात है.
झरना सा झर रहा था आँखों से मोती का
मैं चुन न पाया उनको, मलाल आज है.
उसकी रजा की सोच कर चुपचाप बैठा था
दिन तो गुजर गए बहुत एक बाकी रात है.
मैंने खुदी को समझा सबसे करीब उसके
पर सूना है उसका कोई और खास है.
हर शब पुकारे मुझको आ जा करीब आ जा
कैसे कहूँ मैं भोर की अलग बिसात है.
वो लडकियां जो सडकों पर शिकार बन रही
क्यों दुनिया में उनके लिए फैला तेज़ाब है?
वो छत पड़ोसियों की, वो पतंगें उड़ाना
वो यादें भुरभुरी से मेरे अब भी साथ हैं.
-अश्वनी कुमार
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