बड़े अजीब हैं रिश्ते बड़ी अजीब दास्तान
कोई उजाड़े ख़्वाबों को कोई बना है बागबान।।
कोई नफरत की आग में जला जा रहा है बेपनाह
कोई बांटे हैं मोहब्बत, बदल रहा है ये जहान।।
हर जगह बातें दो हुई, खुदा भी एक न रहा
पुराना खो गया सबकुछ नया नया है कारवाँ।।
हो गया कितना अजनबी कभी नहीं था अकेला
ख़्वाब कोई भी न रहा, नहीं रहा है ख्वाबगाह।।
'आशू' क्यों टूट सा गया, रेत सा वो बिखर गया
उठाके कांधे पर अपनी चला है अरथी-ए-अरमान।।
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