ये गुस्ताख आँखें न माने
हैं मेरी
मुझसे हैं मांगे झलक बस ये
तेरी...
मैं कैसे मनाऊं और कैसे
समझाऊं
के अब वो रही है न ऐ या
तेरी...
ये गुस्ताख आँखें न माने
हैं मेरी
मुझसे हैं मांगे झलक बस ये
तेरी...
मैं नज़रें मिलाता न दर्पण
से हूँ अब
हूँ जब भी मिलाता खबर मांगे
तेरी...
हूँ मशरूफ़ अपनी ही चिल्मन
में मैं अब
जब हो जाऊं फारिक़ हैं बातें
ही तेरी...
ये गुस्ताख आँखें न माने
हैं मेरी
मुझसे हैं मांगे झलक बस ये
तेरी...
है जब से हुई थी मोहब्बत एक
तरफ़ा
तभी से हैं जागी ये तन्हाई
मेरी...
अगर इश्क़ हो तो हो दोनों
तरफ से
नहीं तो ले आता है दुःख ये
भतेरी...
ये गुस्ताख आँखें न माने
हैं मेरी
मुझसे हैं मांगे झलक बस ये
तेरी...
हैं धिक्कार मुझको दिया इक
ही पल में
नहीं जाना उसने कभी थी वो
मेरी...
के ठोकरें खाकर अब ‘आशू’
उठा है
नहीं अब बनेगा वो कमजोरी
मेरी...
ये गुस्ताख आँखें न माने
हैं मेरी
मुझसे हैं मांगे झलक बस ये
तेरी...
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