जिन्हें दिल में हम अब बसाने लगे थे
वही दूर अब हम से जाने लगे थे।
जो कहते थे आँखें तेरी हम बनेंगे
वही हमसे नज़रें चुराने लगे थे।
थी उनको जिन भी रकीबों से नफ़रत
उन्हीं को वो अपना बताने लगे थे।
जिनपर यक़ीन था खुद से भी ज्यादा
वही झूठा कहकर बुलाने लगे थे।
जो सोचा नहीं था खयालों में हमने
उसे सोच सोच घबराने लगे थे।
न मांगी खुदा से थी उसकी खुदाई
क्यों खुदा भी हमको भुलाने लगे थे।
जो मिलते थे सहरा में साहिल पे "आशू"
वही मिलने में अब कतराने लगे थे।
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