अपनी यादों के पुलिंदे खंगालता रहा
तुझको उनमें हरसू संभालता रहा।।
बिखर गया था टूटे पत्थर सा मैं
तेरे लिए ही खुद को संवारता रहा।।
तू न मांगे दुआओं में अपनी मुझे
मैं तो तुझको रब से हूँ माँगता रहा।।
तू हो गयी है मुझसे कितनी ही दूर
मैं तो तुझे ही हरसू पुकारता रहा।।
'आशू' की बात तुझको न आई समझ
उम्रभर तुझको ये ही समझता रहा।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें