शनिवार, नवंबर 30, 2013

ख्याल

ये ग़ज़ल लिखना मेरी मज़बूरी थी, लिखना नहीं चाहता था पर कुछ लोगों ने मज़बूर किया इससे लिखने के लिए। कहानी लम्बी है पूरी बात बता भी नहीं सकता हूँ पर इतना जरुर है के लोग बड़े एहसान फरामोश होते हैं। और सवाल है आपसे मेरा क्या कभी किसी एक का ख्याल किसी दूसरे से नहीं मिल सकता?

जो मिल जाए किसी का ख्याल किसी से 
क्या चोरी है हो जाती घर से किसी के।।

गर लिख दें हम भी किसी बड़े शायर की भाँती 
तो कहते हैं न बन तू शायर अभी से।।

किसी की ग़ज़ल का गर इक शब्द ले लिया तो 
है दामन पे लग जाता दाग तभी से।।

कोई ले ले शब्द को पहले अगर तो 
क्या हो जाता फिर वो अलग है सभी से।।

वो कहते हैं भाव हमारा लिखा है 
वो कहते हैं भाव हमारा लिखा है 
मगर क्या वो भाव है दिल में उन्हीं के?

निकल ही गये 'आशू' की आँखों में आंसू 
अब लिखेंगे शायरी हम इसी से इसी पे।।

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